श्री व्यासजी से मेरा परिचय तीस वर्षों से अधिक का है। एक बार किसी कवि-सम्मेलन में उनसे भेंट हो गई थी। तब से वह परिचय मित्रता में बदल गया और वह मित्रता समय के साथ-साथ गाढ़ी होती गई। इसका कारण उनका सरल, निष्कपट तथा विनोदप्रिय स्वभाव है। वह हास्य-व्यंग्य के कवि और मैं भी उस पथ का राही हूं। यह भी एक कारण हो सकता है कि हम लोग एक-दूसरे के निकट आते गए। यद्यपि वह दिल्ली रहते हैं और मैं काशी में, फिर भी मेरी-उनकी अभिन्नता में दूरी बाधक नहीं हुई।
उनके तीन रूप हिन्दीवालों के सामने प्रकट हैं। चौथा कोई हो तो वह हम लोगों को पता नहीं। सबसे पहले तो हास्य के कवि हैं। उन्होंने अपनी एक शैली अपनाई है और हास्य का अपना आलम्बन रखा है। उनकी पत्नी को मैंने देखा नहीं है, किन्तु उनकी कविता पढ़ने और सुनने से जान पड़ता है वह बहुत आकर्षक होंगी। जो कवि-हृदय को इतनी प्रेरणा दे उसमें कोई विशेषता हुए बिना नहीं रह सकती। वह रहस्य हिन्दी-पाठकों को ज्ञात नहीं है। निषेधात्मक ढंग से यह कह सकता हूं कि वह शुष्क या नीरस न होंगी। और इनको अपने स्नेह से इतना सींचती होंगी कि कविता की धारा फूट निकलती होगी। जो कुछ भी हो, व्यासजी ने नई ज़मीन तोड़ी है। लोग इस पर हंसते हैं, पर हंसने के लिए तो व्यास लिखते ही हैं। कुछ लोग इसे अश्लील भी कहते हुए सुने गए हैं। मैं इस अवसर पर इतना कह देना चाहता हूं कि उसमें ऐसी बातें नहीं पाई जातीं, जो आज के अनेक कवियों की रचनाओं में हैं, जिन्हें आप सभ्य समाज के सामने पढ़ नहीं सकते। मध्ययुगीन कवियों में से कुछ ने ऐसे छंद लिखे, जिन्हें मर्यादा की सीमा के बाहर ही कह सकते हैं। और दूसरे की पत्नी पर तो वह लिखते भी नहीं कि किसी को शिकायत करने का अवसर मिले। विनोद है, हंसी है, मज़ाक है, कोई भ्रष्टता तो नहीं है।
उनकी भाषा सरल होती है। कविता समझने के लिए आप्टे या मनियर विलियम्स का कोश देखना पड़े तो कम से कम मुझे वह कविता नहीं रुचती। मैं अपना नाम अ-पंडितों में लिखाना मान लूंगा, परंतु कविता की भाषा या गद्य की ही भाषा ऐसी न चाहूंगा, जिसके समझने के लिए पं0 गिरधर शर्मा चतुर्वेदी या पंडित गोपीनाथ कविराज के पास जाना पड़े। ऐसी अवस्था में तो हिन्दी-कवित्त छोड़कर नैषध अथवा उपनिषद पढूंगा। इनकी भाषा सरल मुहावरेदार और चुभती हुई होती है। हास्य इसीलिए लिखा जाता है कि तुरंत पाठक या श्रोता के हृदय में घर कर ले। यदि कविता के व्यंग्य को समझने के लिए सोचना पड़े तब तो हास्य की कविता हो चुकी। उनकी कविताओं में व्यंग्य भरा पड़ा है। मैं उनका उद्धरण देना नहीं चाहता। उनकी पुस्तकें लेकर लोग पढ़ें।
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